Shabnami fiza (शबनमी फिज़ा)
- 5 Posts
- 6 Comments
जब तक कि रुक नहीँ जाता
बेटियोँ के संग
भेदभाव का सिलसिला,
मैँ पूंछती हूं..मैँ पूंछूंगी,
और पूंछती ही रहूंगी
हर बार..!
मैँ एक बेटी हूं
क्या बेटी होना, कोई गुनाह है?
क्या मैँ..
माँ-बाप की आशाओँ को
पूरा नहीँ कर सकती?
क्या मैँ..उनकी कसौटी पर
खरा नहीँ उतर सकती?
क्या मैँ.. वह नहीँ कर सकती..
जो..एक बेटा करता है
माँ-बाप,भाई,बहन
और समाज के लिए?
क्या मैँ..
अपनी मेहनत से
इस बंजर जमीन को
हरा-भरा नहीँ कर सकती?
क्या मैँ..
किसी के जीवन मेँ
प्यार के रंग
नहीँ भर सकती?
आखिर क्योँ.. एक बेटी को
आज भी
बेटे के बराबर
नहीँ समझा जाता?
क्योँ.. आधुनिकता के
इस युग मेँ
एक बेटी को
मार दिया जाता है
जन्म से पहले ही
बोझ समझकर?
मैँ फिर पूंछती हूँ आज
एक बार
और पूंछती ही रहूंगी
हर बार..
क्या मैँ..आकाश नहीँ छू सकती?
—
__आबिद अली मंसूरी
Read Comments